इस दिन घटस्थापना के बाद मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री का पूजन, अर्चन और स्तवन किया जाता है। शैल का अर्थ है हिमालय और पर्वतराज हिमालय के यहां जन्म लेने के कारण इन्हें शैलपुत्री कहा जाता है। पार्वती के रूप में इन्हें भगवान शंकर की पत्नी के रूप में भी जाना जाता है। वृषभ (बैल) इनका वाहन होने के कारण इन्हें वृषभारूढा के नाम से भी जाना जाता है। इनके दाएं हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में इन्होंने कमल धारण किया हुआ है। नवरात्र के दूसरे दिन मां दुर्गा के ‘देवी ब्रह्मचारिणी’ रूप की पूजा करने का विधान है। मां ब्रह्मचारिणी के दाएं हाथ में माला और बाएं हाथ में कमण्डल है। शास्त्रों में बताया गया है कि मां दुर्गा ने पार्वती के रूप में पर्वतराज के यहां पुत्री बनकर जन्म लिया और महर्षि नारद के कहने पर अपने जीवन में भगवान महादेव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। हजारों वर्षों तक अपनी कठिन तपस्या के कारण ही इनका नाम तपश्चारिणी या ब्रह्मचारिणी पड़ा। अपनी इस तपस्या की अवधि में इन्होंने कई वर्षों तक निराहार रहकर और अत्यन्त कठिन तप से महादेव को प्रसन्न कर लिया। ...